सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को पैसे की वसूली के एजेंट बनने से मना किया, सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति को ठुकराया
नई दिल्ली / सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने आज एक महत्वपूर्ण न्यायिक टिप्पणी की है जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि अदालतें पैसे की वसूली के एजेंट नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि अदालतों का दायित्व केवल न्यायिक प्रक्रिया के तहत न्याय प्रदान करना है, न कि वित्तीय वसूली की भूमिका निभाना।कोर्ट ने यह भी कहा कि हाल के कुछ मामलों में देखी गई सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती है। सिविल और आपराधिक मामलों के बीच स्पष्ट अंतर बनाए रखना आवश्यक है ताकि न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता एवं प्रभावशीलता बनी रहे।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के आपराधिक मुकदमों का दुरुपयोग एक नकारात्मक प्रवृत्ति है, जो न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने सभी पक्षों को यह निर्देश दिया कि वे किसी भी सिविल विवाद को आपराधिक केस के रूप में न दर्ज करें और मामलों का समाधान उचित न्यायालयों के समक्ष करें।यह फैसला न्यायिक स्वतंत्रता और विवेक के सम्मान की रक्षा की दिशा में एक मजबूत संकेत है। अदालतों ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका कर्तव्य न्याय प्रदान करना है न कि पैसे की वसूली।सुप्रीम कोर्ट के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका न केवल निष्पक्ष है, बल्कि विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाकर न्याय प्रक्रिया की गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करती है।इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने न्याय प्रणाली में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया है और गलत मुकदमाबाजी को रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

Author: Chhattisgarhiya News
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