ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मानहानि को गैर-आपराधिक बनाने का सुझाव दिया
नई दिल्ली 22 सितंबर 2025 — भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि आपराधिक मानहानि (क्रिमिनल डिफेमेशन) को अपराध की श्रेणी से हटाकर डिक्रिमिनलाइज किया जाना चाहिए। यह टिप्पणी मानहानि से जुड़े एक प्रकरण की सुनवाई के दौरान दी गई, जिसमें न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि यह पुराने औपनिवेशिक कानून पर पुनर्विचार का सही समय है।यह मामला प्रसिद्ध समाचार पोर्टल द वायर से जुड़ा है, जिस पर 2016 में प्रकाशित एक रिपोर्ट को लेकर जावाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह ने मानहानि का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जारी समन के विरोध में अर्जी पर विचार करते हुए कहा, “मुझे लगता है अब समय आ गया है कि इसे डिक्रीमिनलाइज किया जाए।” वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी कोर्ट की इस राय का समर्थन किया और कानून में सुधार की आवश्यकता जताई।भारत में अभी भी मानहानि को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अंतर्गत आपराधिक अपराध माना जाता है, जिसे अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 ने प्रतिस्थापित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले 2016 में इस कानून की संवैधानिक वैधता को बनाए रखा था, लेकिन वर्तमान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता की दृष्टि से इसे अपर्याप्त और अवरोधक मानते हुए अपने दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत दिया है।यह निर्णय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूती देने के साथ-साथ प्रेस और आम नागरिकों के लिए अभिव्यक्ति के अधिकार का संरक्षण सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई अभी जारी रखते हुए मानहानि के आपराधिक प्रावधानों पर पुनः विचार करने का संकेत दिया है।

Author: Chhattisgarhiya News
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