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राजेंद्र प्रसाद मिश्रा बनाम कोऑपरेटिव बैंक : एक कर्मचारी की 25 वर्षों की न्यायिक लड़ाई और प्रताड़ना का इतिहास

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राजेंद्र प्रसाद मिश्रा बनाम कोऑपरेटिव बैंक : एक कर्मचारी की 25 वर्षों की न्यायिक लड़ाई और प्रताड़ना का इतिहास

अंबिकापुर। कोऑपरेटिव बैंक के अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ हुए अन्याय और प्रताड़ना की कहानी में एक नाम प्रमुखता से सामने आता है – श्री राजेंद्र प्रसाद मिश्रा। यह सिर्फ एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं, बल्कि उन सभी कर्मचारियों के लिए प्रेरणा है जो अपने हक़ के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इस कहानी की शुरुआत 9 दिसंबर 1995 से होती है, जब महज अन्यत्र पदभार ग्रहण न करने के कारण उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने कानूनी लड़ाई शुरू की और क्रमशः निचली अदालतों ने उन्हें सेवा में पुनःस्थापित करने तथा बकाया भुगतान का आदेश दिया।

बैंक की मनमानी यहीं नहीं रुकी। वर्ष 2000 में बैंक ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई करते हुए 25 अगस्त 2003 को माननीय उच्च न्यायालय ने उन्हें सेवा में पुनः बहाल करने का आदेश दिया। इसके बाद भी उन्हें उनके सहकर्मियों की तुलना में मात्र 25% वेतन ही दिया गया। इस दौरान उनकी पत्नी का 1999 में इलाज के अभाव में कैंसर से निधन हो गया, जबकि दो बेटियों और दो बेटों की जिम्मेदारी उन पर थी।

26 फरवरी 2013 को उच्च न्यायालय ने बैंक की पिटीशन को खारिज कर दिया, जिससे मिश्रा जी अपने लंबित वेतन और पे फिक्सेशन के हकदार बन गए। इसके बावजूद बैंक ने लगातार षड्यंत्र रचते हुए उन्हें प्रताड़ित करना जारी रखा।

2011-12 के धान उपार्जन सीजन में अनुबंध संबंधी प्रक्रियाओं का हवाला देकर उन्हें फिर से निशाना बनाया गया और रिकवरी नोटिस जारी किया गया। इस नोटिस को भी माननीय उच्च न्यायालय ने 4 जुलाई 2013 को खारिज कर दिया। इसके बावजूद बैंक ने दिसंबर 2018 में उनके खिलाफ एक प्रकरण दर्ज कराया, जिसमें ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर 4 लाख रुपए का आरोप लगाया गया, जबकि अनुबंध शर्तों का कोई उल्लेख तक नहीं था।

अंततः श्री मिश्रा अक्टूबर 2020 में सेवानिवृत्त हुए, लेकिन उन्हें न केवल बकाया वेतन बल्कि ग्रेच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से भी वंचित रखा गया। यहां तक कि पेंशन और ईपीएफ खाते के मर्जर के लिए भी उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी।

यह पूरा मामला यह दर्शाता है कि कोऑपरेटिव बैंक की मनमानी और अत्याचारी प्रवृत्ति किस तरह से एक कर्मचारी को दशकों तक प्रताड़ित कर सकती है। आज भी उनकी बकाया राशि और सही मूल्यांकन लंबित है।

यह कहानी सभी कर्मचारियों को यह संदेश देती है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ज़रूरी है और न्याय के लिए संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता।

Chhattisgarhiya News
Author: Chhattisgarhiya News

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